श्री कृष्ण के द्वारका मा स्वागत
(चंडिका छंद, 13 मात्रा अंत 212)
सौजन्य-गुगल
कथा सुनव अब आघु ले । सूत कहय सब साधु ले
सुनत आगमन श्याम के । सुध बिसरागे काम के
काम धाम सब छोड़ के । प्रभु से नाता जोड़ के
प्रजा द्वारिका के सबो । खड़े गली मा हे सबो
किसिम-किसिम के भेट ले । राज महल अउ गेट ले
अंतस मया समेट के । चंदन-चोवा फेट के
नगर सजाये ढंग ले । चउक पुरे नौ रंग ले
तोरण बांधे बाँट मा । साज सजाये हाट मा
गावत हे बिरदावली । राव-भाट गलीन गली
वासुदेव बलराम हा । उग्रसेन अउ साम हा
अगवानी बर हे चले । ज्ञानी पंडित संग ले
चले प्रजा परिजन उहाँ । पहुँचे बनवारी जिहाँ
हँसी-खुषी ले श्याम हा । जन मन के सुखराम हा
मिले सबो ले प्रसन्न हो । भूखे बर जस अन्न हो
ऊपर सादा छत्र हे । सेत चँवर पित वस्त्र हे
गर मा वनमाला हवे । कृष्ण-कृष्ण जम्मो कहे
नर-नारी सब गाँव के । नगर द्वारिका छाँव के
फूल डगर मा डार के । भाव दिखावे प्यार के
रंग-ढंग नाना हवे । कृष्ण दरस पाना हवे
येे स्वागत सत्कार ले । पीछु मिलय परिवार ले
पाँव परय माँ-बाप के । दुख मिट गे संताप के
फेर जाय रनिवास मा । सब रानी के पास मा
दरस-परस ला पाय के । माथा गोड़ नवाय के
मगन होय रानी सबो । हँसी-खुँशी अब हम रबो
- रमेश चौहान