शनिवार, 10 फ़रवरी 2018

अश्वत्थामा का मान मर्दन अउ परिक्षित के गर्भ मा रक्षा

(ताण्ड़व छंद)
कहय सूत शौनक सुन । भगवत पुराण के गुण
सुने भर मा मिल जात । प्रभु के सब भक्ति पात

सुनत भागवत पुराण । मन होय गंग समान
डर-भय कुछ ना बाचय । जग मा कोनो जांचय

कटय सब माया फाँस । मिलय प्रभु भक्ति उजास
ऋषि शौनकमन पूछँय । मन प्रभु मूरत गूथँय

प्रथम बार ये पुराण । पढ़े हे कोन सुजान
अउ आघू कोन धरिस । जग येला कोन भरिस

सुनत सूत होय मगन । कहय सुनव धरके मन
कई कई बार व्यास । खुद करे हे अभ्यास

अपने बेटा ला तब । सउपिस पुनित ज्ञान सब
शुक ले परिछित पाइस । जब काल ह उउड़ाइस

सुनव कथा शौनक मन । पहिली परिक्षित जनम
कुरूक्षेत्र एक स्थान । जिहां युद्ध चलय तान

युधिष्ठिर पाण्डु सुत । अउ दुर्योधन के कुत
लड़ई के आखिर डहर । दिखिस अड़बड़ कहर

जिहां भीम दुर्योधन । लड़त रहय दूनोंझन
गदा भीम हाथ धरय । अउ ओखर जांघ भरय

गदा परते ओ गिरय । उठ के ना फेर भिड़य
गुरू द्रोण सुत जब सुनय । अपने मन बहुत गुनय

बदला कइसे लेवँव । कइसे गुस्सा खेवँव
तब अश्वत्थामा हर । पहुॅचय पाण्डवमन घर

शिविर जाके ओ देखय । अउ मने मन मा लेखय
सुते रहँय भाई सब । उखर मुड़ी काटय तब

मुड़ी हाथ धर ओ बीर । गये दुर्योधन तीर
मुड़ी देख दुर्योधन । गलती लेवय बोधन

मुड़ी पाण्डव के छोड़ । लइकामन के धरे चोर
दुखी दुर्योधन होय । पर मुँह भाखा न बोय

जब जानय ओती बर । तब अश्वत्थामा बर
बहुत गुस्सा सब करय । बचय मत ओ हर मरय

सखा कृष्ण संग धरय । डगर  पग अर्जुन भरय
गुरू द्रोण सुत जब लखय । बचाय बर प्राण भगय

अपन मरन अब जानत। धनुष-बाण ला तानत
ब्रम्ह अस्त्र संधानय । जउन कुछु ल ना मानय

ब्रम्ह अस्त्र के न काट । जब छूटय अपन बाट
जब अर्जुन हा देखय । अपन सखा ले पूछय

कहव हे जग नियंता । कहव हे जग भणंता
उपाय का मैं करँव । अपन गांडिव का भरँव

ब्रम्ह अस्त्र के उपाय । ब्रम्ह अस्त्रे हा आय
प्रभु आदेश पार्थ धर । ब्रम्ह अस्त्र गांडिव भर

जब छोड़य आघु डहर । दिखे लगिस बड़ कहर
जब दुनों हा टकराय । लगय सृष्टि हा सिराय

चिरई चिरगुन काँपय। मनखे देवता हाँपय
नदिया सागर छलकय । अड़बड़ आगी फलगय

प्रभु देखत ये विनाश । कहय अर्जुन ले खास
दुनों अस्त्र वापिस धर । कहर सृष्टि के तैं हर

सुनत अर्जुन प्रभु गोठ । करय काम बने पोठ
दुनों अस्त्र शांत करय । गुरू सुत ला हाथ धरय

पकड़ बांधय हाथ मुख । करय द्रोपदी सम्मुख
दया द्रोपदी ह करय । गुरू सुत के पीर हरय

सखा कहय अर्जुन सुन । अइसे उपाय तैं गुन
मरे बिना घला मरय । गुरू सुत के पाप टरय

सुनत कटार सम्हालय । मुड़ ले मणी निकालय
तब अश्वत्थामा हर । रहिगे लाश बरोबर

अपने अपन मा चुरत । अपने अपन ला घुरत
बदला लेके सोचय । ब्रम्ह अस्त्र ला खोचय

बचय मत येखर वंश । अइसे देहँव ग दंश
अभिमन्यु पत्नि हर जब । रहय पेट मा तो तब

अस्त्र गर्भ बर छोड़य । अपन क्रोध ला फोरय
करय उत्तरा ह पुकार । प्रभुवर तहीं सम्हार

भगत वत्सल भगवान । धरके तब अंर्तध्यान
खुदे गर्भ मा समाय । उतरा के गर्भ बचाय

जउन गर्भ प्रभु बचाय । तउन परिक्षित ह आय
अइसन दयालु हे प्रभु । चरण तेखर परन हमु

मंगलवार, 6 फ़रवरी 2018

नारदजी द्वारा व्यास के असंतोष मिटाना अउ श्रीमद्भागवत पुराण के रचना

(तोमर छंद)
आसन सुग्हर बिछाय । नारदजी ल बइठाय
वेद व्यास धरत ध्यान । पूजय सब विधि विधान

आदर सत्कार बाद । शुरू करय अब संवाद
 ब्रम्हा  मानस सुत आप । तुहर ज्ञान हे अगाध

कहय व्यास हाथ जोड़ । आप शास्त्र म बेजोड़
अपन कुछ बात बताव । मोर संताप मिटाव

नारद कहय सुन व्यास । तोरे मन मा उजास
ज्ञान के ज्ञाता आप । छोड़व अपन संताप

मोर जनम के बात । आज सुरता हे आत
रहय महतारी मोर । जेखरे अचरा छोर

बहुते मजा मै्र पाँव । लुगरा मा जब लुकाँव
दासी सुत मैं रहेंव । दुख दारिद्र ला सहेंव

नानपन के हे बात । मैं ऋषि दुवारी जात
सुनँव मैं उपदेश । मानँव ऋषिन आदेश

अउ जुठा-काठा खात । ऊँहे मैं हर अघात
करत ऊंखर सतसंग । मोर मन रहय उमंग

खेलय काल हर खेल । दाई ला छुइस बेल
दाई रहय बिलखाय । काल के गाल म जाय

दाई के मरे के बाद । छोड़ के मैं अवसाद
रहँव ऋषि मन के साथ ।  मैं उन्खरे  सुनँव गाथ

घीव टघलय जस घाम । सतसंग आइस काम
मोर मन भरगे ज्ञान । सतसंग प्रभाव जान

तब तपस्या बर जाँव । एक जंगल के ठाँव
एक पीपर के छाँव । अपन ध्यान मैं लगाँव

ध्यान धरत मजा पाँव । ईश्वर बर सुर लमाँव
लेत ईश्वर के नाम । मिट गय अवगुण तमाम

हृदय मा ईश्वर वास । देखेंव आत्म प्रकाश
ईश्वर के दिव्य रूप । सकल सृष्टि के सरूप

बिना आँखी के देख । बिना कान के सरेख
अब्बड़ मजा मैं पाँव । मन मा मूरत बसाँव

जेखर रंग ना रूप । चराचर के जे भूप
जेने खाय पतिआय । बाकी मनन बतिआय

मोर मन गोतो खाय । ईश्वर सरूप बसाय
जानेंव न मैं नदान । अछप होगे भगवान

खोजँव आँखी निटोर । आँखी अपनेच फोर
देख व्याकुलता मोर । प्रभु बोलय अमृत घोर

अब ये जनम मा तोर । दरस नई होय मोर
अगले जनम तैं पाय । रहिबे तब तैं अघाय

कल्प कल्प जनम बाद । रहिही ये बात याद
अभी करव एक काम । लेत रहव मोर नाम

मैं याद रखँव दिन रात । ओखर कहे हर बात
जपत जपत कृष्ण कंत । होय जीवन के अंत

अपने मृत्यु के बाद । रहय सबो बात याद
आगे के सुनव बात । जउने याद हे आत

ओही कल्प के अंत ।  जल राशि रहय अनंत
जिहां प्रभु करय अराम । मुरली मनोहर श्याम

प्रभु इच्छा ब्रम्हा जान । जतनय अपने विधान
जम्मो सृष्टि ल सकेल । कृष्ण संग करय मेल

ओही समय के बात । ओखरे सॉस समात
महूँ ब्रम्हा संग जाय । हरि अंदर रहँव समाय

फेर सृष्टि ला सिरजान । इच्छा करय भगवान
तब ब्रम्हा ला उपजाय । जे फेर सृष्टि बनाय

अपन अंगप्रत्यंग । अउ ऋषिमुनिन के संग
महूँ ला ब्रम्हा बनाय । तब ले ये देह पाय

ईश्वर दया ला पाय । प्रभु नाम मोला भाय
नारायण भजन गाँव । तीनों लोक मा जाँव

तमुरा धरे मैं हाथ । गावँव ओखरे गाथ
नारद कहय सुन व्यास । प्रभु कीर्तन हवय खास

जेने करय मन शांत । कतको होवय अशांत
प्रभु आज्ञा हवय एक । कीर्तन करव सब नेक

तैं अपन जम्मों काम । करत रह प्रभु के नाम
हे सत्यगामी व्यास । मानव मोर विश्वास

धर्म साधक हव आप । छोड़व अपन संताप
अपने भक्ति ला साध । प्रभु नाम सुयश अगाध

सुनत नारद के बात । व्यासजी बड़ हर्षात
सुनव शौनक कहय सूत । ईश्वर नाम अद्भूत

मिटय व्यास के संताप । सुनत प्रभु कीर्तन जाप
धर नारद के गोठ । व्यास मन होगे पोठ

महाभारत के पाठ । पूरा करिस तब ठाठ
करत भक्तियोग ध्यान । श्रीवेदव्यास सुजान

रचय भागवत पुराण । सुमरि-सुमरि कृष्ण नाम
व्यास नारद संवाद । प्रकट करय भक्तिवाद

रविवार, 4 फ़रवरी 2018

व्यासजी के असंतोष

(भव छंद)
द्वापर के  बात हे । सूतजी बतात हे
सत्यवती वसु सुता । करत रहय जब बुता

आय पराशर तभे । ओला देखय जभे
करय पराशर दया । सत्यवती ले मया

दूनों के संयोग ले । ऋषि माया योग ले
पराशर उजास के । जन्म होय व्यास के

व्यास कला रूप हे । अपने मा अद्भूत हे
वो तीनों काल ला। जानय हर हाल ला

अपन दृष्टि खोल के । देखय कुछु बोल के
लोग समय फेर मा । करय धरम ढेर मा

वेद ज्ञान भुलाये । अपन ज्ञान लमाये
मनखे धरय रद्दा । छोड़य काम भद्दा

अइसे वो सोच के । बात सबो खोच के
वेद मन ल बाँट के । अलग करिस छाँट के

चार वेद भार ला । धरम करम सार ला
महाभारत म लिखे । जेखर ले सब सिखे

अपन सबो शक्ति ले । व्यास अपन भक्ति ले
कारज कल्याण के । करिस धरम मान के

तभो वो उदास हे । बाचे कुछु प्यास हे
अपने अपन गुनथे । अपने बात सुनथे

अतका सब काम ले । सोचय प्रभु नाम ले
कमी काय बात हे । समझ नई आत हे

मन बहुत उदास हे । अउ का हर खास हे
सोचत वो व्यास हे । अउ बहुत उदास हे

तब नारद आय हे । व्यास खुशी पाय हे
आसन दै मान ले । आदर सम्मान ले

भगवान के चौबीस आवतार

(शिव छंद)
जेन कुछु सरूप हे । श्रीहरिमय रूप हे
रूप घात प्रभु धरे । धर्म सृष्टि मा भरे

धर्म घटय जग  जभे । होय प्रकट प्रभु तभे
 धर्म एक सार हे । प्रभु के उपकार हे

सनक सनत बंधु बन । पहिली प्रभु धरिस तन
राक्षस हिरणाक्ष जब । धरती ला हरिस तब
प्रभु सूकर रूप धर । लूट लाय हाथ धर
भगतन उपकार बर । नारद अवतार धर

भक्ति भाव के अलख । भरिस जगत के फलक
नर नरायण ऋषि बन । अड़बड़ तप करिन वन

कपिलदेव धरिस तन । सांख्य योग भरिस मन
दत्त अत्रि सुत बनय । आत्म ज्ञान जग गनय

यज्ञ नाम ला धरे । रूचि सुत बन अवतरे
ऋषभदेव अवतरे । दिव्य ज्ञान जग भरे

पृथु के अवतार धर । जीइन उपचार बर
डूब रहय सृष्टि जब । मीन रूप धरय तब

दैत्य देव मिलय जब । सागर मिल मथय तब
डूब रहय भूमि जब । कछुवा बन आय तब

मथत-मथत एक घा । निकलिस घट अमृत गा
लड़े लगिन सुर-असुर । अमृत लूट असुर फुर

रूप मोहनी धरय । देवन म अमृत भरय
कशिपु पाप करय जब । प्रकटय नरसिंह तब

वामन अवतार धर । काटय बलि के डगर
परसुराम तन धरय । विप्र द्रोह ला हरय

वेदव्यास अवतरे । वेद ज्ञान जग भरे
राम रूप जब धरय । कर्म ज्ञान जग भरय

हलधर अउ कृश्ण बन । हरय भूमि भार तन
बुद्ध रूप जब धरय । धर्म भूमि मा भरय

हंस ग्रीव नाम के । रूप हवय ष्यम के
जब कलजुग आचही । कल्कि रूप बाचही

अंश मात्र ये हवय । जेन रूप प्रभु धरय
कृष्ण मात्र एक हे । जे ईश्वर नेक हे

ब्रम्हाजी के जनम अउ भगवान के विराट रूप

(अहीर छंद)
जड़ चेतन सब रूप । एक श्याम हर भूप
सुनय सबो मन लाय । बात सूत हर बताय
आदि सृष्टि शुरूवात । कइसे बनय बतात
इच्छा करिस भगवान । लोक तीन सिरजान
धर के प्रभु महतत्व । बनिस पुरूष अस सत्व
दस इन्द्रिय मन एक । पाँच भूत बड़ नेक
क्षीरसागर म शेष। जेमा सुते रमेश
अपने योग लमाय । जम्मा सृष्टि बनाय
माया अपन जगाय । नाभि म ध्यान लगाय
नाभि नाल बगराय । कमल फूल सिरिजाय
जेमा धर मुड चार । ब्रम्हा होय सचार
रूप सत्वमय श्रेष्ठ । श्री हरि धरय यथेष्ठ
खोलव ज्ञान कपाट । देखव रूप विराट
जेखर ओर न छोर । एको मिलय न कोर
जेखर आघु पहाड़ । लागत रहय कबाड़
धुर्रा-कण कस जान । जतका दिखय समान
जेखर हाथ हजार । लागय नार-बियार
कतका पाँव गिनाँव । कतका बुद्धि लमाँव
आँखी मुँह अउ कान । गिनय कोन गुणवान
कतका हवय नाक । देखत रहय ताक
मुड़ हजारो हजार । कोने पावय पार
अतका भरे उजास । मरय सुरूज हर श्यास
कुण्डल चमकत कान । लाखों सुरूज समान
येही दिव्य सरूप । हे नारायण रूप
जेखर सब अवतार । जेने आवय सार
जेखर अंश सनाय । जीव सबो तन पाय

शौनक आदि द्वारा सूतजी के प्रार्थना

(गंग छंद)
मन श्याम राखे । शुक व्यास भाखे
सुन एक बेरा । ऋषि करिन डेरा
हरि क्षेत्र आके । सब जुरीयाके
भगवान पाये । यज्ञे रचाये
कर सूत पूजा । विधि कई दूजा
सब हाथ जोरे । मन गांठ छोरे
शुभ प्रश्न पूछे । मन जेन रूचे
हे सूत देवा । धर हमर सेवा
हस वेद ज्ञाता । अउ पुण्य दाता
कलिकाल घोरे । बड़ पाप जोरे
विधि कोन अच्छा । जे करय रक्षा
ओ कथा दे दौ । ओ रीति दे दौ

(निधि छंद)
सुन ऊंखर बात । सूतजी अघात
सुन लौं मन लाय । गुरू जेन बताय
लइकापन आय ।  शुक जंगल जाय
ले बर सन्यास । मन भरे उजास
देखय जब बाप । सह सकय न ताप
शुक-शुक चिल्लाय । बेटा ल बलाय
षुक सुनय न बात । अपन धुन म जात
शुक ल रमे जान । पेड़ मन तमाम
बोलय सुन व्यास । छोड़व अब आस
बोलत हे सूत । शुकजी अद्भूत
ओ शुक के पाँव । मैं माथ नवाँव
हे नेक सवाल । प्रभु कथा कमाल

मंगलाचरण


जय गणपति । जग अधिपति
जय गजमुख । गौरी सुख
पाँव परवँ । माथ धरवँ
श्रद्धा धर । मन मा भर
शिव नंदन । प्रभु वंदन
विनती सुन । थोकिन गुन
दे सुमती । हर कुमती
गुण भर दे । शुभ कर दे


(सुगती छंद)
श्याम राधे । श्याम राधे
मोर भारे । तहीं धारे
दया कर के । हाथ धर के
संग कर लौ । दास कर लौ
चरित तोरे । करय भोरे
जगत तारे । पाप हारे
नाम तोरे । रूप तोरे
तोर दाया । मिटय माया

(छबि छंद)
हे वेद व्यास । करवँ अरदास
मन भर उजास । मोर बड आस
लेत प्रभु नाम । करवँ शुरू काम
जगत पति श्याम । करय मन धाम
देव शुक पाँव । माथे नवाँव
महिमा सुनाव । श्रीहरि लखाव
शारद मनाँव । मूरत बसाँव
मेटव अज्ञान । हृदय भर ज्ञान

कुन्ती के द्वारा भगवान के स्तुति

  (लीला छंद) आघु कथा कहय सूत । कृश्ण माया अवधूत जब कृश्ण गर्भ बचाय । उत्तरा माथ नवाय जानय कृश्ण उपकार । पाण्डव करय जयकार कुन्ती माथा नवाय । ...

जादाझन पढ़े हें