रविवार, 4 फ़रवरी 2018

ब्रम्हाजी के जनम अउ भगवान के विराट रूप

(अहीर छंद)
जड़ चेतन सब रूप । एक श्याम हर भूप
सुनय सबो मन लाय । बात सूत हर बताय
आदि सृष्टि शुरूवात । कइसे बनय बतात
इच्छा करिस भगवान । लोक तीन सिरजान
धर के प्रभु महतत्व । बनिस पुरूष अस सत्व
दस इन्द्रिय मन एक । पाँच भूत बड़ नेक
क्षीरसागर म शेष। जेमा सुते रमेश
अपने योग लमाय । जम्मा सृष्टि बनाय
माया अपन जगाय । नाभि म ध्यान लगाय
नाभि नाल बगराय । कमल फूल सिरिजाय
जेमा धर मुड चार । ब्रम्हा होय सचार
रूप सत्वमय श्रेष्ठ । श्री हरि धरय यथेष्ठ
खोलव ज्ञान कपाट । देखव रूप विराट
जेखर ओर न छोर । एको मिलय न कोर
जेखर आघु पहाड़ । लागत रहय कबाड़
धुर्रा-कण कस जान । जतका दिखय समान
जेखर हाथ हजार । लागय नार-बियार
कतका पाँव गिनाँव । कतका बुद्धि लमाँव
आँखी मुँह अउ कान । गिनय कोन गुणवान
कतका हवय नाक । देखत रहय ताक
मुड़ हजारो हजार । कोने पावय पार
अतका भरे उजास । मरय सुरूज हर श्यास
कुण्डल चमकत कान । लाखों सुरूज समान
येही दिव्य सरूप । हे नारायण रूप
जेखर सब अवतार । जेने आवय सार
जेखर अंश सनाय । जीव सबो तन पाय

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