शनिवार, 25 जुलाई 2020

महाभारत के बाद श्री कृष्ण के द्वारका मा स्वागत

श्री कृष्ण के द्वारका मा स्वागत
(चंडिका छंद, 13 मात्रा अंत 212)

सौजन्‍य-गुगल

कथा सुनव अब आघु ले । सूत कहय सब साधु ले
सुनत आगमन श्याम के । सुध बिसरागे काम के

काम धाम सब छोड़ के । प्रभु से नाता जोड़ के
प्रजा द्वारिका के सबो । खड़े गली मा हे सबो

किसिम-किसिम के भेट ले । राज महल अउ गेट ले
अंतस मया समेट के । चंदन-चोवा फेट के

नगर सजाये ढंग ले । चउक पुरे नौ रंग ले
तोरण बांधे बाँट मा । साज सजाये हाट मा

गावत हे बिरदावली । राव-भाट गलीन गली
वासुदेव बलराम हा । उग्रसेन अउ साम हा

अगवानी बर हे चले । ज्ञानी पंडित संग ले
चले प्रजा परिजन उहाँ । पहुँचे बनवारी जिहाँ

हँसी-खुषी ले श्याम हा । जन मन के सुखराम हा
मिले सबो ले प्रसन्न हो । भूखे बर जस अन्न हो

ऊपर सादा छत्र हे । सेत चँवर पित वस्त्र हे
गर मा वनमाला हवे । कृष्ण-कृष्ण जम्मो कहे

नर-नारी सब गाँव के । नगर द्वारिका छाँव के
फूल डगर मा डार के । भाव दिखावे प्यार के

रंग-ढंग नाना हवे । कृष्ण दरस पाना हवे
येे स्वागत सत्कार ले । पीछु मिलय परिवार ले

पाँव परय माँ-बाप के । दुख मिट गे संताप के
फेर जाय रनिवास मा । सब रानी के पास मा

दरस-परस ला पाय के । माथा गोड़ नवाय के
मगन होय रानी सबो । हँसी-खुँशी अब हम रबो

- रमेश चौहान

शनिवार, 1 फ़रवरी 2020

महाभारत के बाद श्री कृष्ण के द्वारका लहुटना

श्री कृष्ण के द्वारका लहुटना
       (उल्लाला छंद, 13 मात्रा, ग्यारहवा मात्रा लघु)



सूत कहय शौनक सुनव । कृष्ण कथा मन मा गुनव
सुनव आघु के अब कथा । छोड़-छाड़ मन के व्यथा
जीते महाभारत जब । करे युधिष्ठिर राज तब
दुखी न कोनो राज मा । सुग्घर ओखर काज मा
दैहिक दैविक ताप ना । अउ भौतिक परिताप ना
पाण्डव मन ला देख के । सुभद्रा ला समेख के
कृष्ण रूके महिनों उहाँ । भक्त पुकारे  हे जिहाँ
बहुते दिन के बाद मा । अपन पुरी के याद मा
कृष्ण युधिष्ठिर ले कहय । पाण्डव  परिजन जब रहय
बिदा द्वारिका बर करव । धरम करम ला सब भरव
सुनत बिदा के गोठ गा । दुखी होय सब पोठ गा
भीम नकुल सहदेव सब । अर्जुन धीर धरय न अब
कृष्ण बहुत समझाय हे । धीरज बहुत धराय हे
तभे युधिश्ठिर हृदय भर । कृष्ण हाथ मा हाथ धर
रोनहु-रोनहु हो कहय । हमर तोर बिन का हवय
दया बनाये रखहू अपन । लइका कस करहू जतन
बिदा कृष्ण के तब करय । चरण कमल ला मन भरय
अपन मया के रंग मा । धरय कृष्ण के संग मा
सैनिक सेवक अश्व गज । संग धरय सब साज सज
कृष्ण चलन तो अब लगे । सब खड़े ठगे के ठगे
महिला सब कुरूवंश के । कृष्ण मया के अंश के
रंग फूल बरसाय के । नयन आसु छलकाय के
बिदा कृष्ण के सब करय । कृष्ण रूप आँखी भरय
कृष्ण चले अब द्वारिका । भगतन के उद्धारिका

-रमेश चौहान

शुक्रवार, 31 जनवरी 2020

विदुर के उपदेश अउ धृतराष्ट्र गंधारी के वन गमन

विदुर के उपदेश अउ धृतराष्ट्र गंधारी के वन गमन
(नित छंद, 12 मात्रा पदांत लघु गुरू या नगण)



आघु कथा सुत कहे । भक्त सबो कान लहे
तीरथ यात्रा करके । मैत्रे ले सब पढ़के
आत्मज्ञान विदुर धरे । घरे डहर रूख करे
पहुँचे हस्तिनापुरी । धरे कृष्ण भजन धुरी
देख बिदुर ल मन भरे । सबझन सत्कार करे
पाण्डव सब पाँव परे । धृतराष्ट्रे अंग भरे
जेखर नाता जइसे । व्यवहार करे वइसे
हाल-चाल विदुर कहय । परिजन सब मने लहय
विदुर सबो बात कहे । तीरथ मा जउन लहे
यदुवंषी विनाश ला । कथा कहे न खाश ला
विदुर धर्मराज रहिस । कछुक काल श्राप सहिस
माण्डव्य के श्राप ला । ओ सहिस कुछ ताप ला
सौ साल लक शुद्र बन । ओ काम ला करिस तन
धृतराष्ट्र ले वो बिदुर । कहे आज गोठ निठुर
हे भइया गोठ सुनव । बात मोर तुमन गुनव
आगे हे कठिन समय । मुँड़ी-मुँड़ी काल गमय
सब अपन इहाँ मरगे । तोरे उमर ह ढलगे
कुकुर असन जीयत हस । दुख दरद ल पीयत हस
सुरता कर अपन करम । का हे ओखरे मरम
कतका तैं पाप करे । गुन छाती हाथ धरे
देके भीम ला जहर । ढाये कोन हा कहर
लाख महल कोन गढ़े । पासा ला कोन मढ़े
द्रोपदी के लाज ला । करे अइसन काज ला
पाण्ड़व ला कोन लुटे । धरम कइसे के छुटे
जूठा ओखर खावस । कइसे के सुख पावस
जीये बर जीयत हस । पाप घूँट पीयत हस
येहू् का जीयब ए । पापे ला पीयब ए
झटपट इहाँ ले निकल । कुछ तो अपने भल कर
जा जा अब जंगल जा । कुछ तो तैं मंगल पा
अपन मुक्ति बर कुछु कर । कृष्ण नाम ला मन भर
सुन बिदुर के गोठ ला । ओ गोठ का पोठ ला
मोह माया छोड़ के । सबो नाता तोड़ के
ओ धृतराष्ट्र  अब चलिस । संग गंधारी रहिस
नर नरायण धाम बर । ओ मुक्ति के काम बर

-रमेश चौहान


कुन्ती के द्वारा भगवान के स्तुति

  (लीला छंद) आघु कथा कहय सूत । कृश्ण माया अवधूत जब कृश्ण गर्भ बचाय । उत्तरा माथ नवाय जानय कृश्ण उपकार । पाण्डव करय जयकार कुन्ती माथा नवाय । ...

जादाझन पढ़े हें