विदुर के उपदेश अउ धृतराष्ट्र गंधारी के वन गमन
(नित छंद, 12 मात्रा पदांत लघु गुरू या नगण)
आघु कथा सुत कहे । भक्त सबो कान लहे
तीरथ यात्रा करके । मैत्रे ले सब पढ़के
आत्मज्ञान विदुर धरे । घरे डहर रूख करे
पहुँचे हस्तिनापुरी । धरे कृष्ण भजन धुरी
देख बिदुर ल मन भरे । सबझन सत्कार करे
पाण्डव सब पाँव परे । धृतराष्ट्रे अंग भरे
जेखर नाता जइसे । व्यवहार करे वइसे
हाल-चाल विदुर कहय । परिजन सब मने लहय
विदुर सबो बात कहे । तीरथ मा जउन लहे
यदुवंषी विनाश ला । कथा कहे न खाश ला
विदुर धर्मराज रहिस । कछुक काल श्राप सहिस
माण्डव्य के श्राप ला । ओ सहिस कुछ ताप ला
सौ साल लक शुद्र बन । ओ काम ला करिस तन
धृतराष्ट्र ले वो बिदुर । कहे आज गोठ निठुर
हे भइया गोठ सुनव । बात मोर तुमन गुनव
आगे हे कठिन समय । मुँड़ी-मुँड़ी काल गमय
सब अपन इहाँ मरगे । तोरे उमर ह ढलगे
कुकुर असन जीयत हस । दुख दरद ल पीयत हस
सुरता कर अपन करम । का हे ओखरे मरम
कतका तैं पाप करे । गुन छाती हाथ धरे
देके भीम ला जहर । ढाये कोन हा कहर
लाख महल कोन गढ़े । पासा ला कोन मढ़े
द्रोपदी के लाज ला । करे अइसन काज ला
पाण्ड़व ला कोन लुटे । धरम कइसे के छुटे
जूठा ओखर खावस । कइसे के सुख पावस
जीये बर जीयत हस । पाप घूँट पीयत हस
येहू् का जीयब ए । पापे ला पीयब ए
झटपट इहाँ ले निकल । कुछ तो अपने भल कर
जा जा अब जंगल जा । कुछ तो तैं मंगल पा
अपन मुक्ति बर कुछु कर । कृष्ण नाम ला मन भर
सुन बिदुर के गोठ ला । ओ गोठ का पोठ ला
मोह माया छोड़ के । सबो नाता तोड़ के
ओ धृतराष्ट्र अब चलिस । संग गंधारी रहिस
नर नरायण धाम बर । ओ मुक्ति के काम बर
-रमेश चौहान
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