शुक्रवार, 31 जनवरी 2020

विदुर के उपदेश अउ धृतराष्ट्र गंधारी के वन गमन

विदुर के उपदेश अउ धृतराष्ट्र गंधारी के वन गमन
(नित छंद, 12 मात्रा पदांत लघु गुरू या नगण)



आघु कथा सुत कहे । भक्त सबो कान लहे
तीरथ यात्रा करके । मैत्रे ले सब पढ़के
आत्मज्ञान विदुर धरे । घरे डहर रूख करे
पहुँचे हस्तिनापुरी । धरे कृष्ण भजन धुरी
देख बिदुर ल मन भरे । सबझन सत्कार करे
पाण्डव सब पाँव परे । धृतराष्ट्रे अंग भरे
जेखर नाता जइसे । व्यवहार करे वइसे
हाल-चाल विदुर कहय । परिजन सब मने लहय
विदुर सबो बात कहे । तीरथ मा जउन लहे
यदुवंषी विनाश ला । कथा कहे न खाश ला
विदुर धर्मराज रहिस । कछुक काल श्राप सहिस
माण्डव्य के श्राप ला । ओ सहिस कुछ ताप ला
सौ साल लक शुद्र बन । ओ काम ला करिस तन
धृतराष्ट्र ले वो बिदुर । कहे आज गोठ निठुर
हे भइया गोठ सुनव । बात मोर तुमन गुनव
आगे हे कठिन समय । मुँड़ी-मुँड़ी काल गमय
सब अपन इहाँ मरगे । तोरे उमर ह ढलगे
कुकुर असन जीयत हस । दुख दरद ल पीयत हस
सुरता कर अपन करम । का हे ओखरे मरम
कतका तैं पाप करे । गुन छाती हाथ धरे
देके भीम ला जहर । ढाये कोन हा कहर
लाख महल कोन गढ़े । पासा ला कोन मढ़े
द्रोपदी के लाज ला । करे अइसन काज ला
पाण्ड़व ला कोन लुटे । धरम कइसे के छुटे
जूठा ओखर खावस । कइसे के सुख पावस
जीये बर जीयत हस । पाप घूँट पीयत हस
येहू् का जीयब ए । पापे ला पीयब ए
झटपट इहाँ ले निकल । कुछ तो अपने भल कर
जा जा अब जंगल जा । कुछ तो तैं मंगल पा
अपन मुक्ति बर कुछु कर । कृष्ण नाम ला मन भर
सुन बिदुर के गोठ ला । ओ गोठ का पोठ ला
मोह माया छोड़ के । सबो नाता तोड़ के
ओ धृतराष्ट्र  अब चलिस । संग गंधारी रहिस
नर नरायण धाम बर । ओ मुक्ति के काम बर

-रमेश चौहान


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