शनिवार, 1 फ़रवरी 2020

महाभारत के बाद श्री कृष्ण के द्वारका लहुटना

श्री कृष्ण के द्वारका लहुटना
       (उल्लाला छंद, 13 मात्रा, ग्यारहवा मात्रा लघु)



सूत कहय शौनक सुनव । कृष्ण कथा मन मा गुनव
सुनव आघु के अब कथा । छोड़-छाड़ मन के व्यथा
जीते महाभारत जब । करे युधिष्ठिर राज तब
दुखी न कोनो राज मा । सुग्घर ओखर काज मा
दैहिक दैविक ताप ना । अउ भौतिक परिताप ना
पाण्डव मन ला देख के । सुभद्रा ला समेख के
कृष्ण रूके महिनों उहाँ । भक्त पुकारे  हे जिहाँ
बहुते दिन के बाद मा । अपन पुरी के याद मा
कृष्ण युधिष्ठिर ले कहय । पाण्डव  परिजन जब रहय
बिदा द्वारिका बर करव । धरम करम ला सब भरव
सुनत बिदा के गोठ गा । दुखी होय सब पोठ गा
भीम नकुल सहदेव सब । अर्जुन धीर धरय न अब
कृष्ण बहुत समझाय हे । धीरज बहुत धराय हे
तभे युधिश्ठिर हृदय भर । कृष्ण हाथ मा हाथ धर
रोनहु-रोनहु हो कहय । हमर तोर बिन का हवय
दया बनाये रखहू अपन । लइका कस करहू जतन
बिदा कृष्ण के तब करय । चरण कमल ला मन भरय
अपन मया के रंग मा । धरय कृष्ण के संग मा
सैनिक सेवक अश्व गज । संग धरय सब साज सज
कृष्ण चलन तो अब लगे । सब खड़े ठगे के ठगे
महिला सब कुरूवंश के । कृष्ण मया के अंश के
रंग फूल बरसाय के । नयन आसु छलकाय के
बिदा कृष्ण के सब करय । कृष्ण रूप आँखी भरय
कृष्ण चले अब द्वारिका । भगतन के उद्धारिका

-रमेश चौहान

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