रविवार, 4 फ़रवरी 2018

भगवान के चौबीस आवतार

(शिव छंद)
जेन कुछु सरूप हे । श्रीहरिमय रूप हे
रूप घात प्रभु धरे । धर्म सृष्टि मा भरे

धर्म घटय जग  जभे । होय प्रकट प्रभु तभे
 धर्म एक सार हे । प्रभु के उपकार हे

सनक सनत बंधु बन । पहिली प्रभु धरिस तन
राक्षस हिरणाक्ष जब । धरती ला हरिस तब
प्रभु सूकर रूप धर । लूट लाय हाथ धर
भगतन उपकार बर । नारद अवतार धर

भक्ति भाव के अलख । भरिस जगत के फलक
नर नरायण ऋषि बन । अड़बड़ तप करिन वन

कपिलदेव धरिस तन । सांख्य योग भरिस मन
दत्त अत्रि सुत बनय । आत्म ज्ञान जग गनय

यज्ञ नाम ला धरे । रूचि सुत बन अवतरे
ऋषभदेव अवतरे । दिव्य ज्ञान जग भरे

पृथु के अवतार धर । जीइन उपचार बर
डूब रहय सृष्टि जब । मीन रूप धरय तब

दैत्य देव मिलय जब । सागर मिल मथय तब
डूब रहय भूमि जब । कछुवा बन आय तब

मथत-मथत एक घा । निकलिस घट अमृत गा
लड़े लगिन सुर-असुर । अमृत लूट असुर फुर

रूप मोहनी धरय । देवन म अमृत भरय
कशिपु पाप करय जब । प्रकटय नरसिंह तब

वामन अवतार धर । काटय बलि के डगर
परसुराम तन धरय । विप्र द्रोह ला हरय

वेदव्यास अवतरे । वेद ज्ञान जग भरे
राम रूप जब धरय । कर्म ज्ञान जग भरय

हलधर अउ कृश्ण बन । हरय भूमि भार तन
बुद्ध रूप जब धरय । धर्म भूमि मा भरय

हंस ग्रीव नाम के । रूप हवय ष्यम के
जब कलजुग आचही । कल्कि रूप बाचही

अंश मात्र ये हवय । जेन रूप प्रभु धरय
कृष्ण मात्र एक हे । जे ईश्वर नेक हे

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